मंगलवार, 17 अगस्त 2010

विदर्भ नहीं , बुंदेलखंड के किसानों पर बनी है आमिर की "पीपली लाइव"


नई दिल्ली । आमिर खान की हाल ही में रिलीज हुई फिल्म "पीपली लाइव" विदर्भ नहीं बल्कि बुन्देलखंड के किसानो को लेकर बनी है। बुंदेलखंड के रायसेन जिले के बडवाई गाँव में फिल्माई गई इस फिल्म में बुन्देली संस्कृति तथा रहन सहन के साथ साथ पूरी तरह बुन्देली बोली ही प्रयुक्त की गयी है । उदाहारण के लिए नत्था की पत्नी धनिया अपने जेठ बुधिया से पूछती है " काये कछू भओ का आज ?" तो उत्तर में बुधिया कहता है कि " पईसा तौ मिले नैयाँ " । कहने का तात्पर्य पात्रों के बीच बातचीत में ठेठ बुन्देली ही प्रयुक्त की गयी है। इतना ही नहीं बुंदेलखंड को लेकर केंद्र तथा राज्य सरकारों के बीच जो वाकयुद्ध पिछले कुछ वर्षों से चल रहा है उसको भी इस फिल्म में भी पूरी तरह समाहित किया गया है । "महगाई मारें जात है " नामक चर्चित गाना बुन्देली साज-बाज के साथ गाया गया एक बुन्देली लोक गीत है । उल्लेखनीय है कि पिछले पॉँच वर्षों के दौरान बुन्देलखण्ड में लाखों किसान सूखे से प्रभावित हुए थे। इसके चलते यहाँ से भारी पलायन तथा भुखमरी के साथ साथ किसानों द्वारा आत्म हत्याओं की ख़बरें देश दुनिया तक पहुंची थी । इसी विषय को लेकर आमिर खान ने "पीपली लाइव" फिल्म बना डाली। किन्तु फिल्म में बुन्देलखंड के किसानों के हालातों का प्रस्तुतीकरण निंदनीय है।

मंगलवार, 15 सितंबर 2009

Indian states should be re-organized :Sanjay Pandey

New Delhi: Bundelkhand Akikrit Party demands to re-organize the bigger states of India into comparatively smaller states. With reference to population and area, there is no synchronization among the Indian states. On one side with over twenty crore population is the colossal Uttar Pradesh and on the other side is petite state like Sikkim with a total population of six lakh. Similarly, there is Rajasthan with three and half lakh sq. Km. wide area while Lakshadweep with only 32 sq km area. According to the facts, the rate of growth of small territories is much more than that of large. For example, the annual per capita income in Bihar is just Rs. 3835 while of small states like Himachal Pradesh is Rs. 18750. Not only in economic developments, small states are ahead in education, health developments. For example, in case of education Uttar Pradesh holds 31st place with literacy rate -57% while newly formed state Uttrakahand holds 14t, the per capita income of Haryana is Rs.16200. Pandey said that the conception of large states of India into small states has become very necessary. Giving the example of America, he said that America is united federation of fifty small States and hence its successes can be narrated by whole world. Some people in our country oppose the establishment of small states and believe that this will lead the division of our mother land but their fear is groundless. At the time of independence, there were 14 states in India but now the count is 35, so has the country been ruined? At that time our great INDIA was ONE and still it is ONE and after forming some new small states will also remain ONE.

रविवार, 13 सितंबर 2009

बुंदेलखंड में पनप सकता है नक्सलवाद : संजय पाण्डेय

महोबा। आज बुंदेलखंड क्षेत्र के निवासियों को तंगहाली के दौर में जिस मनोदशा से गुजरना पड़ रहा है । उसको देखते हुए अंदेशा है कि यदि अधिक समय तक उन्हें कोई रास्ता नहीं मिला तो वे नक्सली रुख अपना सकते हैं। केंद्र तथा राज्य सरकारों के अलावा प्रकृति भी बुंदेलखंड वासियों का साथ नहीं दे रही है। पिछले पांच वर्षों से सूखा ग्रस्त इस क्षेत्र में इस वर्ष भी खेती की स्थिति दयनीय है। क्षेत्र में उद्योगों का अभाव है । लोगों की पलायन करने की दर बढती जा रही है। महानगरों में यहाँ के मजदूरों का बुरी तरह शोषण होता है किन्तु फिर भी भुखमरी से अपनी जान बचाने के लिए लगभग आधे लोग शहरों का रुख कर चुके हैं । लाख कोशिशों के बावजूद मजदूरों का पलायन नहीं रुक पा रहा है। बीते शनिवार झाँसी रेलवे स्टेशन पर केन्द्रीय ग्रामीण विकास राज्य मंत्री प्रदीप जैन ने भी बुंदेलखंड छोड़कर दिल्ली जा रहे कुछ ग्रामीणों को समझाया कि वे पलायन न करे , हम यही पर कुछ न कुछ व्यवस्था करेंगे किन्तु लोग नहीं मने। बल्कि इस पर टीकमगढ़ के एक मजदूर गोबिंददास ने जबाब दिया कि सरकार के भरोसे हम भूख से ही मर जायेंगे। कहने का मतलब सरकार पर से लोगों का भरोसा उठ चुका है।
गोबिंद दास जैसे मजदूरों के अलावा ऐसे लोग भी तंगी से गुजर रहे है जो कभी जमींदार हुआ करते थे। आज वे भी दो वक्त के भोजन के लिए संघर्षरत हैं। उनके बेरोजगार लड़के लड़कियां खाली बैठे हुए हैं ,परिणाम स्वरुप विवाह भी नहीं हो पा रहा है। निम्न वर्ग के लोग तो दिल्ली जाकर मजदूरी कर सकते हैं किन्तु यहाँ का उच्चवर्ग रूढीवादी होने के कारण भूखे रहते हुए भी चाहारदिवारी से बाहर जाने को तैयार नहीं। इसलिए ऐसे लोग अन्दर ही अन्दर घुट रहे हैं। रात रात भर जाग कर कभी सरकार को कोसते हैं तो कभी प्रकृति को। किन्तु पेट पलने का कोई रास्ता फ़िलहाल नहीं मिल पा रहा है। पिछले हफ्ते महिलाओं के बेचे जाने का मामला मीडिया में आया ,जिससे यहाँ की हकीकत देश के सामने आई।
इस पर बुंदेलखंड एकीकृत पार्टी के संयोजक संजय पाण्डेय का कहना है कि यदि ज्यादा समय तक प्रकृति का यही रुख रहा और सरकारों ने कोई कारगर कदम न उठाया तो यहाँ अराजकता का माहौल होगा, १०-२० रुपये के लिए छीना झपटी होगी। सरकारों की तरफ से बुरी तरह हताश हो चुके लोगों में अब आक्रोश उबाल लेने लगा है । दूर दूर तक उन्हें गुजारे का कोई रास्ता नहीं दिख रहा है,ऐसे में संभव है कि लोग नक्सलवाद की रह पकड़ लें।

बुधवार, 9 सितंबर 2009

केन्द्र सरकार राजी, राज्य सरकारें भी राजी ,फ़िर देरी क्यों ?: संजय पाण्डेय

केन्द्र सरकार और राज्य सरकारों का प्रतिनिधितित्व करने वाले कई वरिष्ठ नेतागण जब बुंदेलखंड आते हैं तो वहां की जनता के बीच में तो पृथक बुंदेलखंड राज्य की खुली वकालत करते है किंतु वापस आते ही इस मुद्दे को भूल जाते हैं। बुंदेलखंड एकीकृत पार्टी का आरोप है कि गुमराह करने का ऐसा ही क्रम पिछले 50 सालों से चल रहा है । वर्ष 1955 में फजल अली की अध्यक्षता में गठित हुए राज्य पुनर्गठन आयोग की पुरजोर शिफारिश के बावजूद आज तक बुंदेलखंड राज्य का गठन सम्भव नही हो सका। पिछले दो वर्षों से उप्र की मुखिया मायावती अपनी जनसभाओं और रैलियों में बुंदेलखंड राज्य निर्माण की तरफ़ दारी करती हैं किंतु जब इस आशय का विधेयक राज्य विधान सभा से पारित करवाने की बात आती है तो बहन जी पीछे हट जाती हैं । इसी तरह केन्द्र की यूपीए सरकार के प्रमुख नेता गण जिनमे डॉ मनमोहन सिंह तथा राहुल गाँधी स्वयं को पृथक बुंदेलखंड राज्य का हिमायती तो बताते हैं किंतु सरकार कोई संसदीय पहल नही कर रही। पार्टी संयोजक संजय पाण्डेय ने कहा कि ऐसे हालातों में यही निष्कर्ष निकलता है कि बुंदेलखंड मसले पर पूर्व की तरह सिर्फ़ बयान बाजी से काम चलाया जा रहा है। कहा कि यद्यपि राहुल गाँधी जी में बुंदेलखंड के प्रति कुछ करने की कसक है ,किंतु उनकी सोच का क्रियान्वयन भी तो जरूरी है। सोचने या बयान देने मात्र से बुंदेलखंड की समस्या का हल तो नही हो सकता।मप्र तथा उप्र के बीच फंसे बुंदेलखंड क्षेत्र की चिर उपेक्षा का परिणाम है कि यह आज देश के सबसे पिछडे क्षेत्रों में से एक है। किंतु इसके पृथक राज्य बनने के बाद यहाँ केंद्रित विकास होने से स्थिति में सुधार आएगा । इसलिए सरकारें इस महत्वपूर्ण मुद्दे पर हीला हवाली न करते हुए जल्द अपना रुख स्पष्ट करें । पाण्डेय ने बुंदेलखंड वासियों से भी पलायन और आत्महत्या का रास्ता छोड़ अपने अधिकारों के लिए क्रांति अख्तियार करने की अपील की।

सोमवार, 7 सितंबर 2009

Bundelkhand : Finally no way to survive easily

During five year drought in Bundelkhand, nearly fifty percent of its total population had migrated to metro cities like Delhi & Mumbai. In search of their livelihoods they left their homes with bag and baggage . According to Sanjay Pandey ,national convener of Bundelkhand Akikrit Party ,about 6000 people are leaving Bundelkhand everyday .Nearly ten percent farmers sold their all belongings including land and pets at very low prices and migrated with family permanently. On the other hand about forty percent farmers migrated for the short term and may return back to Bunddelkhand in future.
"During drought in Bundelkhand region more than 500 farmers committed suicides till the date due to starvation and debts. These deaths also made other farmers hopeless and hence forced to migrate. After leaving their native place (Bundelkhand) they are struggling still for their "hand to mouth" in Delhi & Mumbai. Due to their poverty, they are being exploited badly everywhere. In this calamity they are even forced to compromise for their young daughters and wives in metros. In other words they have finally no way to survive easily. So they are cursing themselves for being Bundelkhandis." Pandey adds.However the central govt. as well as state governments are playing very shameful game on relief work. Though there are several "drought-relief-plans" on papers but their outcome at ground level is nil. As the resultant we can say that our national politicians are flirting and teasing the 5 crore people of Bundelkhand

रविवार, 30 अगस्त 2009

सूखाग्रस्त किसानो को सीधी सहायता मिले : संजय पाण्डेय

झाँसी । बुंदेलखंड एकीकृत पार्टी के संयोजक संजय पाण्डेय ने यहाँ एक कार्यक्रम में कहा कि आज बुन्देलखण्ड के किसानो को सीधी और त्वरित सहायता की जरूरत है। सूखा राहत के नाम पर विभिन्न योजनाओ में जमकर बन्दर बाँट होता है , इसलिए पात्र किसानों को समय से और उचित मात्रा में राहत राशिः नही पहुँच पाती है। केन्द्र सरकार से मांग करते हुए उन्होंने कहा कि राज्य सरकारों को पैकेज न देकर जिलाधिकारियों के माध्यम से किसानों को सीधी सहायता मुहैया करायी जाए। ये पहले ही सिद्ध हो चुका है कि उत्तर प्रदेश सरकार ने ऐसी राहत राशियों का जमकर दुरूपयोग किया है।लिहाजा अब पुनरावृत्ति से बचा जाना चाहिए। दूसरी ओर पाण्डेय ने यह भी कहा कि सूखा राहत मिलने के नियम कानून इतने जटिल होते है कि आम आदमी उन्हें समझ नही पाता है , इसलिए ऐसे में वह जान ही नही पाता है कि उसे कितनी राशि मिलनी चाहिए , फलस्वरूप उसे जो भी मिलता है वह उतने से ही संतुष्टि कर लेता है। अतः राहत देने का फार्मूला आसान हो ।
कहा कि बुन्देलखंड में सूखा पीड़ित किसानो द्वारा आत्म हत्याओं का सिलसिला शुरू हो चुका है इसलिए और मौतों का इंतजार न करते हुए सरकार को जल्द ही सहायता की सोचनी चाहिए। श्री पाण्डेय ने कहा कि वैसे तो इस वर्ष पूरे भारत में ही सूखे जैसी स्थिति बनी हुई है किंतु बुन्देलखंड कि स्तिथि इसलिए हटकर है क्योंकि यहाँ सूखा का पहला साल नही बल्कि पिछले पॉँच वर्षों से यही हालत है। इसलिए सरकार को बुन्देलखंड के किसानो के बारे में प्राथमिकता से सोचना होगा। राहत प्रदान करते समय भी बुन्देलखंड के किसानो को देश के अन्य हिस्सों के किसानो से तुलना न करते हुए विशेष अधिभार दिया जाए।
बताया कि बुन्देलखंड एकीकृत पार्टी यहाँ के किसानों की समस्याओं को लेकर विशाल आन्दोलन शुरू करने जा रही है.

Bundelkhand Akikrit Party demands central government to help Bundelkhand farmers directly

Bundelkhand Akikrit Party demands central government to help Bundelkhand farmers directly through the district administrations but not in the way of releasing drought package to state governments. According to party convener Sanjay Pandey , it is proved in past that such packages from central government were badly misused by UP government. So the mistake should not be repeated. It is also demanded by the party that the relief work in Bundelkhand must begin as soon as possible because so many farmers have already committed suicides till now. In this position government should not wait for more deaths. He says that in current year drought is a national problem but the situation of Bundelkhand is different from that of any other part of country because it has been suffering from drought since last six years. Hence apart from releasing political statements the govt. should implement . "It is very unfortunate that UP govt. and UPA govt. are crushing the people of Bundelkhand in their political competition" Pandey adds.